पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५२०

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माई. बचने का, इस ध्रुव इतिहास-मुलेखक को कैसे धोका दे हम, इससे अपने को कैसे मौका दें, हम भाई ? मौकेबाजो चलेगी यौ, यह खाला का घर नही, यार, है महाकाल निर्दय यह है विद्रोही दुनिवार । न लेखक, रहा है पानी यह काल, लेखनी अवो रहा अमरो को शुभ शोणित-मसि मे, औ' उपर चढ़ उन निर्मम बधिको को असि में। क्यो सोच, का कुण्ठित होगी निर्दय, असि को यह प्रखर भार? बनने की क्यो हो आतुरता नया टूटे यह वलि की कतार ? यदि हम डूवें इस मृत्यु-धाट, तो पहुँचेगे उस अमर पार । क्या भय ? क्या शोक विपाद हमे? हम विद्रोही, हम दुनिवार । ? हम रहेन भय के दास भो हम नही मरण के चरण-दास, हमको यो विचलित करे बाज यह हेय प्राण अपहरण - प्रास? हम विपपाया जनम क ४८०