पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५३५

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होगहरी पिया ज्यामिप्रभ बन, मा यो मार गिग्गा रिट जागा गौर TI, पाटा भाभी तुम पिरतिगा। FT नावर प गर मेरे, प्रनौर दिया है मारे मेरे जीन पो प्रति-सी का शेष पर युरी है जिस पर अनगिना युगा पो धून अमित, यह लोर, देग पसे जिगयो इतिहाग हो रहा अमित अमित, देगो, वह अपनी पोसि-शैष । गो गरज रह मेरे गहहर, मानरा मे अपने अतीस पी ज्योति-रहर। हरामो टूटे विजय स्तम्भ, उजटे बोटहर, ये राष्टित प्रस्तर-प्रतिमाएं, ये शिलालेख स्तूप अमर, ये गुहा अजता के वासी, अब तक है जिनको कान्ति अजर, ये सब गरजे है क्रोध भरे, अम्बर भी कम्पित है पर घर, एम विपायी नमक