पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५३६

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ये बोले, वैतो, मो मानव अब नया चिन्ता अब कैमा डर? अपने अम्बर में अपने अतीन पी ज्योति लहर। लहराओ तुम ! तुम कौन ? अरे क्या भूल गये? भूले क्या तुम अपना स्वप? मध्य - एशिया ये जाकर पूडी निज मत गौरव अनूप तुम काराकोरम से पूछो, पया उसे याद हैं वे ध्रुव-पग ? जिनने उसके उन्नत सिर पर भांफा मानव संस्कृति का मग? तुम जाग उठो, जो अमृत पुत्र निज हिम में नव उमग भर-भर, लहरामो अपने मानस मे अपने अतीत मी ज्योति - लहर । तुम अपने सुविंगत को गाथा पूछो थाली तुम हिन्द महाणव ते पूछो, हो क्यो आकान्त वुशका से? प्राचीन चीन से तुम पूछो अपने गत मौरय की गरिमा, यूएथलग औ' फाहियान गा गये तुम्हारी वह महिमा । हग विपपापी जनमक ५०३