पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५६३

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उजायर, तू है चिर अवरोध - विजेता, त मानव - पत्याण - विधायर, तू हो है जन गण तू गैरव - छन्दों या गायक ! या तुम धूल मे शैल अनेको, विक्रम भूला ? अवरोवो के क्षणिक म्प वा क्या तुहावो कुछ पता नहीं है ? बाधाओ दौल भी अति अलष्य क्या हुआ यही है? तेरे चरणो मी ठोकर से मिले तू गयो निज वल - सू यो भूला है अपने को? पथ के अमित धूलि - कण साक्षी पवत-मदन के औ' तेरे पद- तल साक्षी ले क्षुर-धारा पर तव नतन के। अयरोथो ये अग्नि-दौल जो तेरे सम्मुख आज सटे हैं,- मे प्रज्वलित अगारे जो तय पय में आन पड़े है,- ये आये है तुझे बनाने एक बार फिर अग्नि परीक्षित, ये आये हैं परने भुझयो फिर से जीवन रण में दौक्षित, } ५२८