पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५६५

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नू है विर अवरोध - विजेता, तू मानव - करयाण - विधायया, तू ही है जन गण उन्नायक, तू भैरव • र दो का गायका ? अवरोधो के क्षणिक रूप का यया तुझको कुछ पता नहीं है? बाधाओ का तुम दौल भी अति अलभ्य क्या हुआ कही है? तेरे चरणो को ठोकर से मिले धूल में शेल अगेको, तू क्यो निज बल - विक्रम भूला दूपयो भूला है अपने को? पथ के अमित धूलि - कण साक्षी पवत- औ' तेरे पद- तल साक्षी ले शुर-पारा पर तव मदन के नतन ॥ अवरोधो के अग्नि मेल जो तेरें सम्मुख आज सड़े हैं.- ये प्रज्वलित प्रसर अगारे जो तव पथ में आग पडे हैं,- ये आये है तुझे बनाने एक बार फिर अग्निपरीक्षित, ये आये है परने तुझरी फिर से जीवन-रण म दीक्षित, इम रिपपाया नमन ५२८