पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५८१

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हम, जो हैं भर- पेट पा रहे, कमरे वही उत्तरदायी है, हम जो मौज पर रहे हैं नित वे हो सो गाणित • पायो है। हमो पातको आज यो तिल तिल पर मरते हैं निज जन, हमी पातको हैं कि भूम यो ज्याला मै जरदते हैं जन-गण हग पत्थर है, या कायर है जो यह मयमा रुसकर भी- रच न सके नव सामाजिक कम, ये इतने क्टु फल चखकर भी। गया यह बात असम्भव थी कुछ कि सब सूत्र अपने कर होते? अपना घर अपना ही होता यदि हम माछ कम कायर होते । तत्र देखते कि क्षुधा सिंहनी इस घर में फैसे मंडराती? तब यह शस्य-श्यामला पुचिवी कंचन क्यो न उगलती जाती? किसे दीप देंहाय । बने है चिर अभिशाप-ग्रस्त अपने मन । इसीलिए, इस मूख - चिता में दग्ध हो रहे हैं निज जन-गण । केन्द्रीय कारागार, बरेलो ३१ अगस्त १९४३ ५२१ हम विषपायी सनम व