पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५८४

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पधारो अमराई में आज पधारो, बैठ रहो इस अमराई की सघन कुज में आज, मेरी अमराई में आज यहाँ आने मे लगती है निदाघ को दोपहरी को लाज, दहकती दोपहरी को लाज । लू चलती है हहर-हहर कर आग बरसती है पृथिवी पर, जल रहे है पल-क्षण, तुम यहाँ विता लो कुछ घडियाँ बिन काब, पधारो, बैठ रहो इस अमराई की सघन कुज मे मज । अत्ति सूनी है यह अमराई, यहा अमित नीरवता छाणी, कि केवल कोयल गाती है पचम में अपने स्वर को साज, सुघड, इस समय पधारो गज-गति से तुम अमराई मे आज। देखो अमिया गदरायी है मन मे सिंहल उठ आयी है, गुदगुदी अन्तर को कहती है तुमसे आओ, हे रस-राज' पधारो सहज, सलन मुसकाते मेरी अमराई में आज ५ विपड़सर हरा, गयो दिल्ली इम विषपाया सनम के ५५०