पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मेरे स्मरण-दीप की वाती तुम विन तिल तिल कर जलती है मेरे स्मरण-दीप की बाती, देखो तो अब धार बनी है मेरी दृग् यूँदो की पाती । इधर स्नेह-निधि ने जल-वारे वन कर बहने की हठ ठानी, उचर जगा दी है तव रति ने स्मरण-दीप वतिका पुरानी, मेरा स्नेह तैल वन जलता, औ,' बहता बन पानी-पानी, यो नित शतथा क्षय होकर भी वही सनेह तेल की बाती । तुम बिन तिल तिल कर जलली है मेरे स्मरण-दीप की बाती । सधन मोह तिमिरावृत, विस्तृत, निपटशून्य है जीवन पथ मम आज बनी उसको पगडण्डी व्यथा शूल सकुल अति दुर्गम, अतिशय सूना अति एकाकी है मेरी याना का यह क्रम, तिस पर मुसे मिली सम्बल मे यह लप हप वाती अनुलाती । से पय क्रमित होगा यह, जव कि बने मेरे दिन राती? तुम जा बेटे ज्योति महल में दीप टिगदिमाता सा देकर तम मजन कर न सदूंगा, पिय, केवल लघु-स्मति-दीपक लेबर, अन्धवार है तुम बिन मन मे, तुम दिन लयुटि शून्य मेरे कर, समाह है और धनी, प्रिय, रख रघु दीप शिखा बलसाती, तुम चिन तिल तिल पर जलती है मेरे स्मरण दीप को याती। हम विपपाया जनमक