पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६

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समर्पण थी बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' को स्मृतिमें, उनको चोयी निधन तिथि, (२९ अप्रैल १९६४ ) के अवसरपर उनका यह काव्य शकलन प्रकाशित हो रहा है। सकलनका नाम 'नवीन'और एक प्रसिद्ध दोहये अशपर बात है हम विपपायी जनम क, सद्दे भयोल कुवाल लगा, कि दोहेका यह घरण 'नवीन'जीवे व्यक्तित्वकी गरिमा, औषटपन, सापना और समपणको झलकाता ह । सामर्थ्यका स्वामी रात ही चिपपायी हो सकता है, जिसके गलेम अहि माल है और मस्तकापर चद्रमाकी कला, जो विप्लव और सहारका सृजनवी भूमिका बनाता है और जो नटराज है1 मुषा पान टोटकर मओ विप-गानका वरण करते है, वही कह सकते है ठाठ कीराना है अपना, बायनर सोहे अपन तन मह सकतन जब गुप्तजी (श्री मैथिलीशरण गुप्त ) और 'एक भारतीय आत्मा' (श्री गारामलाल चतुर्वेदी) के हाथमें पहुंचेगा, तब क्या कालाकापुस्पोका एक ज्यलत युग जिराने निर्माणमें स्वम सहयोगी ह उगवी कल्पना साकार न हो उठेगा? यह विक्ल हो उठेगे कि मलि- दानिया के अग्रणी श्री गणेशशार विद्यायों नहीं रहें, और राहा, सहधर्मों नवीनची भी नहीं रहे । याद आयेंगे दिसम्बर १९१६ के वे दिन जब हसनऊ काँग्रेस अवसरपर इन नारोमै स इस एकतै अपनो नलमयो और अपने स्वप्नोको राष्टके प्रति समर्पित किया था, और शेप तीनने समपण यज्ञके लिए यह नवीन समिधा पायी थी। राष्ट्रीय जागरणकै इतिहासम साप्ताहिक 'प्रताप' यदि गणेशशकर विद्यार्थीवा काति मदिर है सो 'नवीन जो उसके सापारयाही स्तम। ज्वालामोके उस युग आहतियोको ही होड घो। 'नवीन' सोभाग्यवान थे कि उनको गणेशयाकरफे सापो विषपानी दीक्षा मिलो, और इसलिए हम विषपायी जनम के