पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६०७

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हुए मेरे खिल उठा माज मेग दातदल, अलिगण, लहराया मधुर मधुर परिमल, गृन गुन गुन गुन गुंजा गुजन, पद नस का कोमल किरण-जाल छाया मेरे गगनागन मे, वे ललित-ललित-लघु-लाल-लाल पद-चिह्न अंके यम प्रागण में, मम नयन, उनीदे, नमित, अरुण, विस्फारित ही रह गये, प्राण, वे निनिमेप, दे करुण तरुण, जिनमें छाये तुम, है सुजान । ? मेरे सुहाग वया कहूँ कि मैं क्या हुआ आज कृतकृत्य कहूं? चिर धन्य कहूँ? जब तुम आये, मम हृदय राज, सब निज को क्यो न अनय कहूं । का सूय उदित, छायी सिंदूर की यह लाली, मेरे सनेह का शि, प्रमुदित मेरी निशिदिशि-दिशि उजियाली, मेरै चदा, यो हो चमका वरना निशि-दिन, मेरे मेरे अचरज, जीवन होगा दूभर तुम चिन । डिस्ट्रिनट जैल, उन्नाव १२ सितम्बर १९४२ रहस्य, ५te हम पिपपायी जनम के