पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६०९

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आकाक्षा का शव 1 मे अपनी आकाक्षा का शव बान्धे पर डाले घूम रहा, मैं इस दिक काल हिंडोले मे ऊपर-नीचे झुक सूम रहा है नहीं शम्भु व्यामोह मुझे मे नही पिनाकी प्रलयकर, ने हैं अकाल, में कालबद्ध, मै मानव हूँ, वे शियशकर, वे सती देह ले घूमे थे, मम काधे माकाक्षा का शव। मेरी, उनकी यया समता हो? देवाधिदेव थे, मैं मानव 11 मैं बोला अरी नियति तू दे पूर्णता, या कि दे अगारे, अध बिच में मानव को रखकर व पीस-पीसकर क्यों मारे ? ग हूँ मानयता का प्रतीर, मेरी दुदशा गिहार, अरी, जीवन मलिका है निरी रिक्त, वाहर रो लगती भरोभरी है गही स्वन्ध पर उत्तरीय, लिपटा है शव आवाक्षा का, मैं मानन विभ्रम डोल रहा, लादै बोषा निज चाहा था, हम विपपाथी जनमक