पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६१०

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मेरी असफल आकाक्षा पह भरामय मर गयी विना चौले पड गयी गाठ मेरे हिय मे, उसको कोई कैसे खोले । में रह-रह टेर लगाता हूँ शव जीवित कर दो, रे काई। में कहता फिरता हूँ देखो, देखो, मेरी मै अमिय खोजने निकला हूँ, मैं नाप चुका जल, थल, अम्बर, इक बिन्दु सुधा यदि मिल जाती तो यह दाव उठता सिहर-सिहर । पैन्द्रीय कारागार, परेला ८ अगस्त १९४३ सुषमा सोयो। अगारों की झलियाँ तुम मेरे लोचन - जल - कण म छलक रह हो स्मरण बने, झलक रहे हो यि - देषण में तुम मेर मन - हरण बने, तुम मेरे शोणित गतन में थिरक रहे हो निशि - वासर, अरे, तुम्ही तो गूंज रहे हो गग गीतो के चरण बने । तुम्ही छा रहे हो, मेरे प्रिय, मेरे मानस - अम्बर में, आये हो तुम मधुर राग बन मम चीणा के पार म वद कोमल मगल भायन से रजित है मम गगनागन मुझको तुम्ही बुला लाये हो अपने लग्न - स्वययर मे। हम विषपामी जनमक ५०१