पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६२४

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आज भी हूक उठ ही आतो है, औ तबीयत य' लूट हो जाती है, कुछ हुए हैं अजीब वाक नवनि उनको उम्मीद कर बर आती है ? लॉयनप्रवास १५ अगस्त १९९९ Hin मृत्तिका को गुडियो के गीत मैंने हाय, गाये औ' मुनाये नब म्पर भर, प्राण-मन-हर मृत्तिका की गुडियो के गीत, ढरकाये उनके चरणो में अजसू अथु, रामदा उन्ही को मैंने एकनिष्ठ निज मीत, किन्तु विधि याम बोले करके विद्रूप हाम्य मेटोगे कैसे अपनी माग्य-रेखा विपरीत हार है तुम्हारी चिर सगिनी, अरे गवनी, कौसी मनुहार ? कैसा प्यार ? अरे, योसी जीत? जिनको दिया था मैने स्नेहोदक अध्य शुद्ध, जिनको प्रदान किये मने निज भक्ति फूल, जिनमें गुलाता रहा प्राणों के चैवर रादा, जिनको पगो के नित चुनता रहा मैं शूल, जिनको उदास देख जग सुनमालपा, जिनको प्रसन देष सुब-बुध गया भूल, आज देखता हूँ, वे हो हो रहे बिराने, अरें, किसी भाग्यशाली के हुए है वे ही अनुकूल हम विषपायो जनम 1 ५८५