पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६३

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मोती को सुध आते ही सोती पीडा जगती है, ग्रीवा की माल तुम्हारी हिय मे दुलने लगती है। आ के बयार धीरे-से थपको दे लगो मुलाने, उस निशि की मधुरस्मृति को हलके से लगी भुलाने। पर नीद हो गयी वैरिन, नैनो को छोड मिधारी, यह रात, बिरात हुई है, आखें क्या करे विचारी? धीरे-धीरे सब यातें जग-जग के आयो आगे, विम्मृति ने नाता तोडा, ये पुन स्मरण सब जागे। उस निशि की सुध आयी है, जब शरद-चादनी छायी, नभ को कर के आलोकित सरिता तट पे मुसकायो। टूटो मो नैया भगा के नीले जल में डुलती थी, थिरक रही थी, वम्पित होती पल-पल मे। हम विपपायी जनमक