पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६४

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तुमको चिठला के हिय मे पूनो का चाद निहार, लहरो पे राग करूँ मैं, तुम ये सब सरबस दार। यह सोच-सोच कर नौका यि मै हुलसी खुलती थी, उस दुग्ध-फेन रजनो में मन की मिश्री घुलती थी। कितने उल्लास भरे थे, आशाएं हिय में कितनो, अनुगान नहीं था, तुममे होगी निष्टुरता इतनी। में इचोटी पेजा गोला- सरकार, नाव झुलसी है। तुम बोल उठे - पागल की क्षण में आंखें खुलती है 1 उफ् । बोसो निष्ठुरता थी। क्या अरमानो का वध था। उन वचनी मे, हे निर्दय, क्तिना पीडाफार मद था। वह शरद पूर्णिमा मेरी सूनी हो रही अभागी, उस रात लगा जो झटका, हिय भी हो चला पिरागी। हम विपपायो जनम के V9 ६