पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६३१

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मेरे अम्बर में निपट अंधेरा छाया इस जीवन में क्या प्रात कभी भी आया। मेरे अम्बर में निपट अंधेरा छाया । है नहीं याद कर ऊपा मुसकायी थी? पमा पता कि कर दृग मे अरुणा छायी थी? मैने क्या आसावरी कभी गामी थी? अब तो जौयन में है विहाग - तग माया मेरे नम्बर में आज अँधेरा छाया 7 1 जिनको समझा अपना, ये हुए पराये, मेरे अपित मृदु सुमन म उनको भाये, वे किसी अन्य के हृदय लगे, हुलसाये, उसने हंस हंस औरो से नेह लगाया । मेरे अम्बर में निपट अंधेरा छाया 1 विसका वीजे विश्वास न किसका कीजे' थे अगर यहे 'हाँ' तो क्यो हिय न पमोजे। कहकर मुकरें तो क्यो न हृदय यह छीजे' मैंने उनकी 'हा' पर सबम्ब टाया 1 मेरे अम्बर मे निपट अंधेरा छाया ! ५२२ हम विषपारी जनमक