पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

करती हूँ मन्याति सशन को कर में नेह - प्रदीप लिये मैं, सनी, सनोलो हूँ जब दोपक तर होती गुदगुदी हिये में। नयन-निमन्त्रण नयन-निमन्त्रण हमने भेजा कि तुम इधर को आओ, तुमने नयनो से कह भेजा आते हैं, तुम जाओ, चले गये हमारे नभ-हृदय मे, लेकर बिथा पुरानी, भोर देखते रहे बाट यह युग-युग की पहचानी, पर, तुमको विस्मता हो गयी निज नयना को भापा, और रह गमी पथ निहारती मौन हमारी याशा । श्री गणेश चुटोर, रानपुर ३ जनवरी १९४२ हम विषपायी जनम के २०९