पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६५

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अव शीतल जल के तल में मेरी तरणी सोती है, तट पे, यह भग्ना वयी उराकी पीडा रोती है। इम रात, अचानक, कैमे, सुध उस निशि की हो आयो? निष्ठरा पुन स्मृति मेरी वयो उसे खीच ले आयी? दोलाचल वृत्ति ओ अभिशप्त, को न सूने ही यह याचना अलख चरणों में 'देय, नेह मेरे प्रति उनका गरल बना दो, दुखद क्षणों में, उनमा नवं अनुराग नलीना बन जाये विरक्ति वी छाया, वरद, नेह यो घृणा बना दो, मुझे बना दो निपट पराया, इम मनेह वरदान भार यो, योगे, पैसे सहन परू में? इस लिन, पर, पम्पित गर में यह धन गमे ग्रहण कर मैं" यो अभागे यही प्रापना उट्ठी यो तन अतरतर से, मि-गगा-मी यही याचना धार वही थी हिय आम्बर से, मग पा सर गयो घार वह और हुए ये पर नाबालित अपपा सत्र मापा हो गयो 'यमन्तु' पर में प्रतिपारित, Pादा गत पान-गम ने हरी पृणा आज सेरे प्रति, पार मिर्गन में पर गिरे उना मगरह पी गति । स गरिया नमक