पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उस दिन उरो विमुक्त कर दिया महा मृत्यु के डर ने,- टूटे बन्धु मिट गया खटका, फटी मरण की काई जिस दिन बजी मुक्त शहनाई। नचिकेता बोला गुरु यम से आर्य, ईश है साक्षी, में मुमुक्षु हूँ मृत्यु तत्त्व का मुझे न दो मोनाक्षी, अन्तक यम बोले नचिकेतो, मरणे मानुप्राक्षी किन्तु पौसा कब वह माया में जिम मरण धुन भायो ? भाई, आज बजी शहनाई। नैनी जेल १ मितम्बर १९४१ चेतन भी मृण्मय है अचलित जड ही तो मृण्मय है, यिन्तु इसो जडता हो मे तो चेतन का संचय है ? अचलित जड ही तो मृगाय है ? मृयुम्प जह को आधारित कर चेतन दगरा, इस आधार दिना योरो यह पच जगती मे दमरा? जर जर हो है बना घरातल पेतन के माधम पा.- तर हिय में यह मरण-भीनि या अटवा पयो रोगय है? आरित जर ही तो मुणमय है? हम विपराया नमक ६२४