पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६६२

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निर्ममता को अचविगलिता जो मृत्तिका पुरानी,- उससे निमित मगल-घट लै आयो मृत्यु भवानी, मरण-द्वार पर खडो हुई है उसक भरी ठकुरानी, ना जाने किस दूर देश का यह सन्देसा लायो, भाई, आज वजी शहनाई 1 मत कर सोच-विचार, छोड तू झझट इस बस्ती का, नहीं खात्मा होगा, प्यारे, तेरी इरा हस्ती का, वन्धन तोड, चला चल पीकर प्याला अलमस्ती का मरण एक बन्धन खण्डन है, मरण नही दुसदाई, भाई, आज बजी शहनाई। पौ फट गयी, मिट गया क्षण में अन्धकार अज्ञानी, नभ-रानी कपा मुसकानी, भव-भय-निशा सिरानी, अनजानी को अकथ महानो अव चेतन ने जानी, उसने आज अलख वो अभुत पायल-ध्वनि सुन पायो, भाई, आज वजी शहनाई। जब पायल की रुनुन अनुन से साजन स्वय बुलायें, जब वे 'आ-आ' कहकर मजुल निज अंगुलिया दुलाये, तव प्रयाण-उन्मुख उन्मन जन सुध-बुध क्यो न भुलायें। उस क्षण अपनी देह ममो न यह लगने लगे परायी। भाई, जब बाजे शहनाई जिस दिन चला समुद जग जीवन निग प्राणार्पण करने,- जब वह चला पूण चैतन के ऋण का तपण करने, हम विषपायी जनम के ६२५