पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६६९

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2 है स्वयभू विश्व यह सब, है नही सृष्टा कही जब,- दृश्य हो ध्रुव सत्य है जन, क्यो मिले द्रष्टा कही तब जन्म, जीवन, मरण सब, है सेल भौतिक शक्ति का ही, चेतना तो एक भ्रम है, सत्य तो है मृत्तिका हो । 2 कव ? मृत्तिका से रहित प्रकटी चेतना बोलो रहा हो रहा अभिव्यक्ति उसको मृत्तिका मिश्रित यहाँ जब- तवन क्यो भौतिक क्रिया ही मान ल हम चेतना की। व्यथ में कर कल्पना उकसायं क्यो हिय - वेदना को? है अगर भौतिक क्रिया का खेल हो जीवन - मरण यह,- तब कहो फैसा नियामक ? औ' यहाँ अशरण - शरण वह ? ठीक तो है, वन्चु, चेतनता विलग रिसने निहारी? ठीक तो हैं, जड रहित हो वह मही प्रवटी विचारी, किन्तु भौतिक शक्ति यह जो कर रही है रास - लीला, या जिसे परमाणु - कणिया वन गयी है प्रगतिशीला,- वह कहो प्रकटी कभी क्या जड - वणो से विलग होकर, क्या दिखाई दी कभी वह निपट पार्थिव प सोकर? पदि नही, तर भी नहीं क्या सच मम्मत शक्ति सत्ता ? विश्व शक्ति गदाब मय है, यह रही या बुद्धिमत्ता। निपट जड उपकरण में ही व्यक्त भौतिव पारित माया, किन्तु उसयो नित्य - सत्ता मै नही सन्देह - छाया । तब भला निर चेतना की शायिन भी हो क्यो न म्वीन' जड़ विलगता भाव के कारण यही क्यो हो निगदृत्त । 5म विषपायी मनम ५५०