पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६७०

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चेतना, प्रत्यक्ष - दशन के बिना यदि एक भ्रम है, तो जगत को शक्ति भी क्या भूल का ही विफल श्रम है । और फिर विज्ञान कहता गति चलित जिन अणु - कणो को, उन कणो को गति दिखाई दी अलग क्या कुछ क्षणो को ? गति, किसी ने क्या कभी भी स्थूल से विरहित निहारी' यदि नही तो क्या तिरोहित हो गयी वह गति विचारी? बाज तो विज्ञान की दिशि है निपट एकीकरण को, आज तो इन्च जगी है शक्ति के सन्तत स्मरण को, शक्ति वह जो उष्णता, विद्युत्, विचुम्बक-गतिमयो है,- शक्ति वह जो ध्वनिमयी है, ज्योति - रेखा - रति - मयो है, स्थूल भूत पदार्थ प्रबाटे है न क्या उस शक्ति ही से? तव कहो, हमको मिलेगा क्या भला जड - भक्त्ति ही से? निज विकामो के प्रथम यदि स्थल था अति सूक्ष्म, अलखित, अगर जडता यो कभी चिर शगित का ही रूप सुललित,- यदि निखिल जड़ जगत् को, जड शक्ति ही है मल-माया, तब कहो, कैसे ? कहाँ से यह सचेतन भाव आया ? तर्क कहता है कि जड में जो गणित गति-सृत्ति भरी है, वह विसो चित् रूप को हो कल्पना शिव पायरी है। मत्त लगाओ तक के अम्बार, मो, जडता-प्रचारक, ये के कोट ओट न कर समेगे नमन-तारना । हिय गुहफ्निी पूछती है रात दिन 'स्व पदासि । क्रत्व' और कहती है 'तदेजति तत् न एजति, प्राण रात्व" चेतना को एलि भो' जड पारित का सदलेप कहना, रोक लेगा क्या हृदय के विक्ल प्रानो मा उलना हम विषपानी जनमक 7 ६३१