पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६७५

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घन सूची- भेद्य तिमिर फेल रहा सभी ओर, इस तम में, याहते हो मैं देखू किरण • कोर' नव चेतन - भोर कहाँ । यहा निविड निशा घोर, यहा कहा पाऊँ में छपा के अरुण तार? महन, सघन अन्धकार 1 पर ऐसा लगता है कि यह सधन अन्धकार,- वढता है, होने को किरणो पर ही निसार,- अंधियाला करता है अवश देश, काल, पार, ताकि मिटे कभी जन्म-मरण-भेद-भाव - रार . गहन, सघन अन्धकार निज यो आबद्ध किये जड़ के उपकरणो में,- मरण - तिमिर लिपट चला, गुण्मय आवरणो में, जीवन की ऊपा के ज्योति पुज चरणो मे, होने वो न्योटावर चढता है वह अपार । गहन, सघन अन्धकार । तुम कैसे लीलामय ? उनियाला, अधियाला,- दिखलाकर अमित किया, जन मन भोला-भाला। पर, फिर इक रूप दिया सब गोरा औ' पाला, हम - भय को का बना किया मरण - तिरस्कार, तब क्या घन अन्धकार? नाल १ अबर १९४१ हम विषपाया जनम