पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६७४

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गहन, सघन अन्धकार । मह लोचन - शिथिल - करण, गहन समन अन्धकार ! ज्योति दलग, किरण - दमन, भ्रमायतन, नयन भार गहन, सघन अन्धकार। दृग - पथ को घेर - घेर चरण - चिह्न लुप्त किये, सकल सृजन - लीला निज अन्तर में गुप्त किये, अपनी गोदी मै चर, अक्षर सभी सुप्त किये, फैला है भूतल से नभ तक इसका प्रसार गहन, रापन अन्धकार। कैसा दिवा - माग ? मजन, दिशा शून्य अम्बर मम, पन्थ रख - शून्य अवनि, निविड तिमिर आकर मम, मन में है अन्धकार - जन्य फित, मति - दिग्भ्रम, किघर चलें, प्रिय, मैं तो बैठा हूँ हृदय हार गन, सघन अन्धकार। ध्याल तिमिर घन निशि का लहराता है समुद्र, यह कराल कालाणव, जिसकी हर लहर रुद्र, यहा कहा ढूँद प्रिय, जीवन को मुक्ति क्षुद्र लहराता है अगाध मरण - सिधु या गहन, सघन अन्धकार 1 ? अपार। 3 अवनी से अम्बर तक लहराता काल स्वय, लहरो पर करती है, नृत्य, गत्यु - बाल स्वय, चपल धरण, हरण - शील, देते है ताल स्वय अग - जग यह करता है क्षण - क्षण भरणाभिसार । महन, सघन बधार 3 हम विषपाधीशनमक