पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६८४

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"में महा मृत्यु आ गयो आज सण्डन करने को ये बन्धन, क्षण मे मे दृग मिच जायगे, क्षण मे थम जायेगा स्पन्दन, चैतने चल देगा उदासीन, उसको भावी पय - शिति अनन्त, वह क्यो हो मन मै क्षोण, दोन? उसकी तो है अथ इति अनन्त, जीवन, आ, दू चेतन बनकर, कर नित्य उत्क्रमित यह डंगरी, तुझको है चलना अमो बहुत, है दूर अभी पिय की नगरी।" दम चिपसमा जनम क ६५