पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६८३

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चिर चेतन का सन्देश लिये में महा मृत्यु दूती आयी, तू जड के बन्धन तोड, और, वन मुगत, अरे जीवन भाई, मत और अधिक तू उलझ यहाँ, है कई और भी काम तुझे, मैं कहती हूँ कि इतिश्री हो, जीवन को बाती आग बुझे, जोवन, तुझको चेतन बन कर, कुछ और उस्क्रमण करना है, तू आज चला चल मेरे सग, सुझको कुछ और उभरना है, "जडता के बन्धन खण्डन को मत समझ कि है यह सवनाश, त् हो यदि जरता से विरहित तो भी तू क्यो हावे उदास चल छोड आज अपना पिंजर, यरे सनातन राजहस, यह तेरा वारा नही, होने दे इसस आज ध्यस, अनिरद्ध, शुद्ध, तेरा म्बभाप, तू विनिर्मुक्त, तू बन्धहीन, का अधिवासी तु गगन विहारी दिर नयीन । ६५५ हग निपपायी नमक पिंजर तू अन्तरिक्ष