पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/८०

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है आदन्त शस्त्र-मज्जित जम, तुम हो कौन ? कहाँ से आये? इस गत आश अहिंसा का तुम बेवक्त सैदेसा लाये। क्या हटो सामने से तुम वरना टुकड़े-टुकडे हो जाओंगे, व्यथ वरवराओ मत, वरना हाथ प्राण से धो जाओगे, अरे, अहिंसा का इस जग में कौन काम ? है कुदी धम वह, रक्तपान-रत शीपक जग मे, हिंसा ही है परम कर्म यह, आज शस्न-आयुध-मय जग के अति कराल दष्ट्रा के नीचे,- मानय-मुक्ति दवो, न सिनेमी, अरे अहिंस, तुम्हारे पीने। है सिद्धान्त आदि से प्रचलित नीति-शास्त्र का बडा पुरातन, अन्तिम लक्ष्य, काय-गाधन को, रादा बना देता है पाचन, मानवता के इन गोपण का ध्येय हमारा मानव मुबिन प्राप्त गरला ही प्रेय हमारा, श्रेय हमारा, उन्मूलन है हम विषपापी जनम क ५. &