पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/८६

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मत अवलम्बित रहो तर्क पर तर्व-सूत्र का कोन सहारा, वही न हेत्वाभासो में हो उलझ जाम यह जीवन सारा । नापी भूधर, अरे, विहग -- अवलोकन के मिस उठो जरा सतह से ऊपर, अपने डैने फैला कर कुछ, सरगर, अभ्यर, एक दृष्टि में मानवता को देसो, उसकी कुति निहारो, आज हमारी विकट समस्या क्या है, इसको जरा विचारी, यदि तुम गहरे में गैठो तो देखोगे कि प्रश्न है भारी, केबल शोषण - उन्मूलन ही नही समस्या एक हमारी, हामी? माना तुम दलितोद्धारक हो, माना तुम हिंसक निकामी, पर क्या तुम जन-उद्धारण-हित आज धने हिंसा के हिंसा से जन-मोक्ष मिलेगा। इतनी सुलभ मुक्ति मानव को ? तव तो भाई बड़ी सुलभ है वन्धन-यण्डन-विपि इस भव को, हम विषपायी जनम के