पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/११४

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थर्मामीटर को बर्फ दिखाने से उसका पारा नीचे गिर जाता है, इसी प्रकार सैय्यद की मारी गर्मी उसके डरपोक हृदय में सिमट आई और वह माथे का ठंडा पसीना पोंछता हुआ, जाने क्या सोच कर उठ खड़ा हुआ?

जाने क्यों? फरिया के उभरे हुए मन की बड़ी भारी चोट लगी । उसने भरी हुई आवाज में कहा--"क्या बात है सैय्यद?"

"कुछ नहीं।" यह यह कर सैय्यद की गर्दन झुक गई, उसकी बात में कमजोरी थी।

"मैं तुम्हारे योग्य नहीं हूँ।"

यह सुनकर फरिया के प्रेम में रंगे हए अधर खुले, 'डार्लिंग' कह कर, वह उठी और अपनी दोनों बाहें उसके गले में डाल कर बोली--"पागल मत बनो।"

सैय्यद ने उसी हालत में उत्तर दिया--"मैं खुद नही बनता, पागल या बेवकूफ़! जो कुछ भी हूँ, मेरा इसमें कोई कसूर नही है। यह कह कर उसने फरिया की बाहें धीरे से हटाई। उसकी आवाज में कुछ और भी दुःख मिल गया था। मुझ में और तुम मैं बहुत अन्तर है। तुम आज़ाद वातावरण की उपज हो; पर तुम' अंग्रेज नहीं हो। तुम्हारा रंग शासन करने वालों से नहीं मिलता; किन्तु तुम फिर भी महसूस करती हो कि तुम्हारा पद हम भारतीयों से ऊँचा है; किन्तु छोड़ो, इसको। तुम मुझे डालिग कह सकती हो; किन्तु अकेले में भी मेर जबान तुम्हें डालिग कहने में संकोच करेगी। तुम जानती हो कि तुम्हारा काम क्या है; किन्तु मुझे मेरा काम कुछ और ही बताया गया है। तुम्हारे ख्याल आजाद हैं; किन्तु मेरे ख्याल गन्दे पानी में फैर्मे

हवा के घोड़े
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