पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/११३

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बाकी मैं खा लूँगी, यह विचार भी बुरा नहीं। अस्टफल में खाना अगले इतवार को सही।"

सैय्यद डबल-रोटी ले आया। मिस फरिया ने चुटकियों में ही डिनर तैयार कर के तिपाई पर रख दिया, फिर दोनो खाने में व्यस्त हो गए।

एक टोस मक्खन लगाकर फरिया ने उसको दिया और कहा--"यदि इसी तरह खुशी में दिन कटते जायें तो कितना अच्छा हो? मैं जिन्दगी में और कुछ भी नहीं माँगती, सिर्फ ऐसे दिन, जिस तरह इस टोस को मक्खन लगा है, माँगती हूँ।"

सैय्यद अपनी होने वाली बदनामी के बारे में सोच रहा था। फरिया के चिकने-चिकने गालों को देखा और उसके दिल के एक कोने में ख्याल उठा कि वह उठ कर चूम ले। सैय्यद अभी कुछ भी फैसला न कर पाया था कि फरिया मुस्कराती हुई उठी और अपने मोटे-मोटे त्रसित अधर सय्यद के अधरों पर गिरा दिए।

एक क्षण के लिए सैय्यद को ऐसा तजुर्बा हुआ कि फरिया के अधरों ने झकझोर कर उसकी आत्मा को आजाद कर दिया हो, यानी उसने जोर से फरिया के कठोर हृदय को अपनी छाती के साथ भींच लिया।

सैय्यद पागलों के समान फरिया के साँवले कपोल और मोटे अधरों और ताज्जुब में फड़फड़ाती हुई काली आँखों को चूमने लगी। फरिया को सैय्यद की यह आदत पसन्द आई और उसने अपने आपको उसकी गोद में डाल लिया।

सहसा सैय्यद को फरिया के प्यार का पता चला और जिस तरह

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हवा के घोड़े