पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/११६

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फरिया भावुकता के आवेश में चीख उठी और बोली---"क्या हम शादी के बिना एक दूसरे से प्यार नहीं कर सकते?"

यह सुन कर मैप्यद के दिल में सिकुड़ी हुई भावना थोड़ी सी फैल गई, लेकिन वह फरिया के पास से उठ खड़ा हुआ..."नहीं।"

"क्यों?" फरिया ने पूछा।

"इसलिये कि मैं यहाँ चोरों के समान रहता हूँ, आज की ही घटना को ले लो। सिनेमा के बाहर एक सम्बन्धी को देख कर, जिसका नाम मैं खुद भी नहीं जानता। मेरे होश उड़ गए थे और मैंने तुम्हें अपनी निगाहों से दूर कर दिया था, मानो हम दोनों एक दूसरे को बिल्कुल ही नहीं जानते। ऐसे निकम्मे आदमी के साथ जीवन निर्वाह कैसे कट सकना है, जो अभी-अभी औरत के उत्सर्ग जैसे प्यार को ठुकरा कर एक ओर हट गया हो?"

फरिया मुस्कराती हुई पलंग से उठी और फिर एक बार अपनी बाहें सैय्यद के गले में डाल दी---"तुम बड़े ही अच्छे हो, सैय्यद। केवल मैं ही प्यार करना नहीं जानती।"

फरिया की सादगी ने सैय्यद की तड़पती आत्मा को एक और झटका दिया। उसने धीरे से फरिया के बिखरे हुए बालों को ठीक करते हुए कहा--"नहीं! यह मेरा कसूर है और मैं इसकी सजा बड़ी देर से भुगत रहा हूँ, तुम से दूर हुआ तो यह सज़ा और भी सख्त हो जायेगी।"

फरिया चिल्ला उठी--"तुम मुझे छोड़ कर जा रहे हो?"

सैय्यद ने जवाब में सिर्फ यही कहा---"मुझे अपने आपसे यही आशा है।"

हवा के घोड़े
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