पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१२५

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हत्तक' मेरी अच्छी कहानी है। हत्तक--हत्तक तो मेरी सबसे अच्द्धी कहाना है।

लेकिन न मैंने, न मन्टो ने अब्दुलगनी को पैसे दिये। न उसने हमसे लिये। आज मुझे जब यह घटना याद आई, मैं उसी वक्त अब्दुलगनी की दूकान खोजता कश्मीरी गेट पहुँचा। मगर अब्दुलगनी कई वर्ष हुए वहाँ से पाकिस्तान चला गया था। काश आज अब्दुलगनी टेलर- मास्टर मिल जाता। उमसे मन्टो के बारे में दो बातें कर लेता और किसी को तो इस बड़े शहर में इस व्वर्थ काम के लिए फुरसत ही नहीं है।

शाम के वक्त मै जो० ऐ० अन्सारी 'संपादक' 'शाहरा' के साथ जामा मज्जिद से तीस हजारी अपने घर को आ रहा था। रास्ते में हम दोनों आहिस्ते-आहिस्ते मन्टो के व्यक्तित्व और उसकी कला पर बहस करते रहे। सड़क पर गड्डे बहुत थे इसलिए बहस में बहुत से नाजुक मुकाम भी आये। एक बार पंजाबी कोचवान ने चौंककर पूछा--'क्या कहा जी मन्टो मर गया,?

अन्सारी ने आहिस्ते से कहा--हाँ भाई! और फिर अपनी बहस शुरू कर दी।

कोचवान धीमे-धीमे अपना तांगा चलता रहा लेकिन, मोरीगेट के पास उसने तांगे को रोक लिया और हमारी तरफ घूमकर बोला--'साहब आप लोग कोई दूसरा तांगा कर लीजिये। मैं आगे नहीं जाऊँगा।, उसकी आवाज में एक अजीब सा दर्द था। पहले इसके, कि हम कुछ कहें--वह हमारी तरफ देखे बिना ही अपने तांगे से उतरा और सीधा सामने की बार में चला गया।

कृष्ण चन्दर

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हवा के घोड़े