पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/२३

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रहती थीं। पुष्पा के विषय में विचार ही करना व्यर्थ था। क्योंकि उसका विवाह एक बजाज से होने वाला था, जिसका नाम इतना ही बदसूरत था, जितना पुष्पा का सुन्दर। वह कभी-कभी उसे छेड़ा भी करता था और खिड़की में खड़े होकर अपनी काली अचकन दिखा कर कहा करता था-"पुष्पा बताओ तो मेरी इस अचकन का रंग कैसा है?" पुष्पा के कपोलों पर क्षण भर के लिये गुलाब की पत्तियाँ सी थरथरा जातीं और वह बहादुरी से उत्तर देती "नीला"।

उसके होने वाले पति का नाम कालूमल था। लाहौल-बि-ललाह "किस प्रकार का यह भद्दा सा नाम" उसका नाम रखते हुए उसके माता-पिता ने कुछ भी नहीं सोचा।

जब वह पुष्पा और कालू के विषय में सोचता, तो अपने हृदय में कहा करता। यदि इनका विवाह किसी भी कारण से नहीं रुक सकता, तो केवल इसी कारण से विवाह रोक देना चाहिये कि उसके बनने वाले पति का नाम बेहूदा है।...कालूमल...एक कालू और इस पर "मल" धिक्कार है...इसका क्या तात्पर्य है?

किन्तु वह सोचता यदि पुष्पा का विवाह कालूमल से न हुआ तो किसी घसीटाराम हलवाई, या किसी करोड़ीमल सर्राफ़ से हो जायेगा। वह उस दशा में उससे प्यार नहीं कर सकता था। यदि वह करता तो उसे हिन्दू मुस्लिम दंगे का डर था। मुसलमान और एक हिन्दू लड़की से प्यार करे..प्रथम तो प्यार करना वैसे ही अपराध है और फिर मुसलमान और हिन्दू लड़की को प्यार करे..."एक करेला दूसरा नीम चढ़ा" वाली बात।

नगर में कई बार हिन्दू मुस्लिम फ़साद हो चुके थे, किन्तु जिस मुहल्ले में सैय्यद रहता था, न मालूम किस वजह से बचा हुआ था। यदि वह पुष्पा, कमलेश और राजकुमारी से प्यार करने का विचार

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