पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/२२

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नं० २ सगरा, नं० ३ नग़मा इनके विषय में विचार करना ही व्यर्थ था, क्योंकि वे एक कहार मौलवी की लड़कियाँ थीं। इनका विचार करते ही उसके सामने उस मस्जिद की चट्टाइयाँ आगईं, जिन पर मौलवी गर्दत्तल्ला साहब लोगों को नमाज़ पढ़ाने और बाँग देने में लगे रहते थे। मौलवी की दोनों लड़कियाँ जवानी में पदार्पण कर चुकी थीं। वे जवान और सुन्दर थीं; किन्तु यह अनोखी बात है कि उनके मुख, जैसे दरवाजे के आगे दीवार बनी होती है, इस प्रकार के थे। जब सैय्यद अपने घर में बैठा उनकी आवाज़ सुनता तो वह अनुभव करता कि आदत के अनुसार कोई धीमे-धीमे स्वरों में प्रार्थना कर रहा है। इस प्रकार की प्रार्थना, जिसका अभिप्रायः वह स्वयं भी न जानता था। इनको केवल खुदा से प्रेम करना सिखाया गया था, मनुष्य से नहीं। इसलिये सैय्यद इनसे प्रेम नहीं करना चाहता था।

वह इन्सान था, इन्सान को प्यार भरा हृदय देना चाहता था। सगरा और नग़मा को इस प्रकार से सिखाया जा रहा था, कि इस संसार में नहीं, बल्कि दूसरे संसार में उन भले-मानस व्यक्तियों के काम आ सकें।

जब सैय्यद ने उनके विषय में सोचा, तो अपने आपसे कहा---"भई नहीं इनसे प्रेम नहीं किया जा सकता, क्योंकि अन्त में यह लड़कियाँ कुछ दिनों पश्चात् किसी और के हवाले कर दी जायेंगी। मुझे संसार में गुनाह भी करने है। इसलिये मैं यह जुआ नहीं खेलना चाहता। मुझसे यह न देखा जायेगा कि मैं, जिससे प्रेम करूँ और वह कुछ दिनों बाद किसी अन्य पुरुप को दे दी जावे।"

इसलिये उसने सगरा और नग़मा का नाम सूची से काट दिया।

नं० ४ पुष्पा, नं० ५ कमलेश, नं० ६ राजकुमारी, जिनका आपस में, भगवान ही जानता है कि क्या सम्बन्ध होगा? सामने वाले मकान में

हवा के घोड़े

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