पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/२५

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एक दिन उसने राजकुमारी के कोमल हाथों से बुना हुआ मेज़-पोश देखा। "उसे विचार आया" कि उसने हृदय की अनगिनत धड़कनें भी उसकी छोटी-छोटी डब्बियों में गूँथ दी हों। एक बार जब वह उसके समीप ही खड़ा था, उसके हृदय में प्यार करने का विचार उत्पन्न हुआ; किन्तु जैसे ही उसने राजकुमारी की ओर देखा, तो वह मन्दिर के रूप में दीख पड़ी, जिसके साथ बनी मस्ज़िद के समान वह खड़ा था.."मस्ज़िद और मन्दिर में क्या प्यार हो सकता है?"

मुहल्ले की सभी लड़कियों से यह हिन्दू लड़की बुद्धिमान थी। इसके माथे पर एक पतली-सी रेखा अपने पाँव जमाने की चेष्टा निया करती थी, जो इसे बहुत अच्छी दीख पड़ती थी। इसके माथे को देख कर वह मन ही मन में कहा करता कि जब भूमिका इतनी सुन्दर और आकर्षक है तो मालूम नहीं पुस्तक कितनी आकर्षक होगी...मगर... पाह...ये मगर...इसके जीवन में यह मगर शब्द सच-मुच का मगर बन कर रह गया था, जो उसे डुबकी लगाने से सदा रोके रखता था।

नं० ७ फात्मा उर्फ फत्तो, खाली नहीं थी। इसके दोनों हाथ प्यार में डूबे हुए थे। एक अमजद से जो लोहे का काम किसी वर्कशाप में करता था, दूसरा उसके चाचा के बेटे से, जो दो बच्चों का बाप था, उससे प्रेम करती थी। फ़ात्मा उर्फ फत्तो इन दोनों भाईयों से प्यार कर रही थी। मानो एक पतंग से दो पेवें लड़ा रही हो। एक पतंग में जब दो और पतंग उलझ जावें तो अधिक दिलचस्पी पैदा हो जाती है; परन्तु यदि इस तिगड़े में एक और पेंच की वृद्धि हो जाये, तब यह उलझाव एक भूल-भुलइया का रूप धारण कर लेगा। इस प्रकार का उलझाव सैय्यद को अच्छा नहीं लगता था। इस के अतिरिक्त फत्तो जिस प्रकार के प्रेममय जीवन में फँस चुकी थी, वह प्रेम निकृष्टता का रूप था। सैय्यद जब इस प्रकार के प्रेम का विचार करता तो प्रेममय

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हवा के घोड़े