पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/२६

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पुरानी कहानियों की 'बड़ी चट्टनी' पीले काग़जों के ढेर से उठ कर उसकी आँखों के सामने लाठी टेकती हुई आ जाती और उसकी ओर इम प्रकार देखती जैसे कहना चाहती है कि मैं उस नीलपटी पर बिखरे तारों को ला सकती हूँ। बता तेरी नज़र किस लड़की पर है, ऐसे चुटकियों में तुझसे मिलाप करा दूगी।

उस बुढ़िया का विचार आते ही वह 'पाईबाग़' के विषय में सोचता। वह जाहरापीर और दाता गंज बख्श की समाधि उसकी आँखों के सामने आ खड़ी हो जाती। जहाँ वह बुढ़िया, उसकी प्रेमिका को किसी बहाने से ला सकती थी?...उस विचार के उठते ही उसका प्रेम मुकड़ जाता और एक ऐसी समाधि का रूप धारण कर लेता; जिस पर हरे रंग का ग़लाफ चढ़ा कर, अनगिनत हार उस पर बिखेरे गये हों..।

कभी-कभी उसे यह ख्याल भी आता। यदि 'चट्टनी' असफल रही, तो कुछ ही दिनों के पश्चात् इस मुहल्ले से मेरा जनाज़ा ही निकलेगा और दूसरे मुहल्ले से मेरी उस प्रेमिका की अर्थी निकलेगी जो यौवन में पदार्पण कर चुकी थी। यह दोनों अर्थी और जनाज़ा एक दूसरे मुहल्ले से निकलते हुए टकरा जाएँगे तो फिर दोनों अर्थियाँ एक अर्थी का रूप धारण कर लेंगी या प्रेममय कहानियों की तरह जब मुझे और मेरी प्रेमिका को दफ़न किया जाएगा, तब एक नीहारिका प्रगट होगी पौर दोनों समाधियाँ मिल कर एक बन जायेंगी। वह यह भी सोचता यदि उसकी मृत्यु भी हो गई और उसकी प्रेमिका किसी कारणवश आत्म-हत्या न भी कर सकी, तब आये वीरवार को उसकी समाधि पर कोमल हाथ, उसकी याद में फूल चढ़ाया करेंगे और दीपक भी जलाया करेंगे। अपने काले और लम्बे केशों की लटाएँ खोलकर अपना सिर (माथा) समाधि से फोड़ा करेंगी और समाज एक तस्वीर और बना

हवा के घोड़े

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