पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/९

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इस समाज में जीवन बनावटी है, प्यार बनावटी है, आँसू दो प्रकार के होते हैं और अट्टहास भी दो प्रकार के। सैय्यद राजो से प्यार तो करता है; किन्तु डरता है समाज से। प्यार निम्न वर्ग की राजो से कैसे हो सकता है? लेकिन हृदय से उसका प्यार कैसे निकाले? वह किसी भी ढंग से उसे भूल जाना चाहता था? इसलिए घर छोड़ा। उसके प्यार के ही कारण वह अब्बास जैसे साथी की सलाह पर भी फरिया से शारीरिक प्यार नहीं करना चाहता। वह तो समझता है, प्यार हर इंसान के अन्दर नई उमंगें लेकर पैदा होता है।

'मुहब्बत यार की इंसाँ बना देती है इंसाँ को'


परन्तु यह समाज सैय्यद को 'दुखी जीवन' ही दे सकेगा। वह तो अब्बास के शब्दों में आजीवन धन जोड़ता रहेगा और प्यार से जीवन में प्रकाश नहीं होगा। उस प्रकाश को जीवन में लाने के लिए आवश्यकता है---समाज के ढांचे में परिवर्तन की! क्रान्ति की!!

प्रस्तुत पुस्तक प्यार के आचार्य स्वर्गीय श्री सआदत हसन मन्टो के एक मात्र उपन्यास 'बगै़र अनवान के' का अनुवाद है; परन्तु इस अनुवाद को 'बिना शीर्षक' न रख, 'हवा के घोड़े' नाम दे दिया गया है, जो इस विचार से उपयुक्त है, कि पूरा उपन्यास सैय्यद की दिमाग़ी उलझन से ही भरा पड़ा है, अपने मस्तिष्क के विचारों को ही वह पाठकों के सामने रख रहा है। आशा है कि पाठकगण इसका स्वागत करेंगे।

१ जुलाई १९५६
शरण
 
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हवा के घोड़े