पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/१६७

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[ १३४ ] रसहीरावली लीला-ध्रुवदास कृत, वि० राधा | रसिक आनन्द-ग्वाल कवि कन, लि० का० सं० कृष्ण की केलि का वर्णन । दे० (ज-७३ पी) १४५०, वि० अलंकार घर्णन (दे० '(क-२) रसानंद भट्ट-गोकुल निवासी; सं० १८६६ के रसिकगोविंद-इनके विषय में कुछ मात नहीं। लगमग वर्तमान, भरतपुर नरेश बलवन्तसिंह जुगलरस माधुरी दे० (ज-२६३ ए) के श्राश्रित, आति के ब्राह्मण भट्ट थे। कलियुग रामौ दे० (ज-२६३ बी ) संग्राम रमाकर दे० (ज-२६०) रसिकदास-स० १७५१ के लगभग वर्तमान, रसानंद लीला-ध्रुवदास कृत, नि० का० सं० राधावल्लभी संप्रदाय के वैष्णव स्वामी नरहरि- १६५०,वि० राधा और कृष्ण का विहार वर्णन । दास के शिष्य और वृंदावन निवासी थे। -दे० (ज-७३ ए) प्रसादलता दे० (छ-२१ ए) रसानुराग-प्रयागीलाल उप० तीर्थराज कृत; याणी वा रममार दे० (छ-२२ वी) नि० का० सं० १९३०, लि० का० सं० १६३५; भक्तिसिद्धान्तमणि द० (८-२१८ सी) वि० नायिका भेद और भाचादि का वर्णन । पूना विलास दे० (छ-२९-डी) (ग-88) दे० (च-११) (छ-परि०५-७८) एकादशी माहात्म्य दे० (छ-२१८६) रसालगिरि गोसाई-गोखामी मेदिनी गिरि के कुनकौतुक दे० (ग-5) शिष्य; मैनपुरी निवासी; सं० १८७४ के लगभग रसकदव चूडामणि दे० (ज-२६३) वर्तमान सं० १८८३ में मृत्यु दुई, अन्तिम काल रसिकपचीसी-रसिकराय कृत; वि०२५ कविसों. मैं संन्यासी होकर मथुरा में रहने लगे,सेठ सेख में कृष्णजी का गोपियों को ऊधो द्वारा सँदेसा 'राज के कहने से इन्होंने दो ग्रंथ यनाए थे। भेजने का वर्णन । दे० (६-३१६ सी) वैद्य प्रकाश दे०(ज-२५६ ) रसिक-मिया-केशवदास कृत, नि० का० सं० स्वरोदय दे०(ज-२५६षी) १६४८ वि० गार, रस, काव्य वर्णन । दे० रसिक अनन्य माल-भगवन मुदित कृत; लि० (क-२) (घ-१)(ग-२५६) (ग-२६०) का० सं० १८७४, वि० राधावल्लभी संप्रदायी, श्रीहित हरिवंशजी तथा उनके शिष्यों का रसिक-प्रिया टीका-सूरत मिथ कृत, नि० का०स० वर्णन । दे (ज-२३ सी) १८००, लि० का० स० १७, वि० केशवदास रसिकानन्यसार-गोस्वामी जतनलाल कृत, कृत रसिक प्रिया पर टीका । दे०(छ-२४३डी) लि० का० सं० १८६१; वि० स्वामी हित हरि- | रसिक-मिया टीका सहित-कासिम कृत; नि० वंश और उनके अनुयायियों का वर्णन । दे०. का० सं० १६४८ अशुद्ध है, क्योंकि केशवदास (ज-१३७) ने इसे सं०१६४८ से १६५८ तक लिखा था, रसिक अलि-इनके विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं। वि० केशवदास कृत रसिक प्रिया पर टीका । होरी दे०(छ-३१७) दे० (ज-१४७)