माना जा सकता। ( २८ ) राष्ट्रीय कवि का उनको ईश्वर मानना उपयुक्त नहीं | पुस्तकों की रोज का काम कितने महत्व का है और इसको सुचारू रूप से करने के लिये काशी नागरी- जिस समय महाकवि भूषण ने 'शिवराज भूपण' प्रचारिणी समा को तथा, इसके निमित्त आर्थिक नामक ग्रंथ यनाने का विचार किया था, उस समय सहायता देने के लिये संयुक्त प्रदेश की गर्वमेण्ट को केवल आदर्श चरित महाराज शिवाजी को देख | जितना धन्यवाद दिया जाय, थोडा है। संयुक्त प्रदेश कर ही उक्त ग्रंथ रचा था जैसा कि उन्होंने खयं को गवर्मेट के शिक्षा सचिव मिस्टर ती वाई. उसी में वर्णन किया है- निनामणि के कार्य काल में फाशी नागरीप्रचारिणी शिवा वरित लखि यो भयो कवि भूषण के चित्त। सभा की वार्षिक सहायना २०००) मे २०००) हो भाँति माँति भूषणनि सो भूपिन करौं कवित्त ॥२६॥ गई थी। इस कार्य के महत्व का समझकर उक्त वर्तमान साहित्यिक इतिहास का इस लेख से शिक्षा सचिव का धनाभाव रहने पर भी वार्षिक पूर्ण विरोध और खंडन होता है। इसी से उक्त सहायता दूनी कर देना उनकी सूक्ष्मदर्शिता और बातों के प्रकट करने का मुझे स्वयं ही साहस | विद्याप्रेम का परिचायक है। अतपय हिंदी प्रेमी नहीं हो रहा था, क्योंकि बड़े बड़े विद्वानों की | मात्र को उनका भी अनुगृहीन होना चाहिए । राय को काटना धृष्टता है। परंतु अपनी राय इस विवरण के प्रस्तुत करने में खोज विभाग और विचारों को सब पर प्रकट करने तथा ऐनि | के एजेंटों ने जो कार्य किया है, उसके लिये में हासिक तथ्य को न छिपाने के उद्देश से ही मैं | अपनी कृतमता प्रकट करता है। काशी नागरी- ऐसा करने को बाध्य हुआ हूँ । आशा है, इतिहास-प्रचारिणी सभा के प्रकाशन विभाग के निरीक्षक प्रेमी साहित्यसेवी विद्वान् शांतिपूर्वक इस विषय वाचू रामचंद्र वर्मा ने इस विवरण के शुद्धतापूर्वक पर विचार करेंगे और उनका जो निर्णय होगा, ) छपवाने में प्रशंसनीय परिचम किया है; भतपय यह मुझे भी सहर्ष मान्य होगा। उनके प्रति भी मैं अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करता इस लेख में जिन विषयों पर विचार हुआ है, हूँ। मुझे विश्वास है कि यह विवरण हिंदी साहित्य उन सब की सामग्रो मुझे खोज और उनकी रिपोर्ट्स के विवेचन में सहायक और हिंदी-भाषियों तथा में मिली है।" लेखकों के इतिहास-प्रेम का उत्तेजक होगा। पं०मगीरथप्रसाद जी की इन थोड़ी सी बातों काशी से यह स्पष्ट हो गया है कि हस्त-लिखित हिंदी पीप शुक्ल ७,सं० १९८० } श्यामसुंदरदास।