पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/८२

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सीमा सप्तरीयी (अ-१३५) बागोबना दे०(२८) बाप-सरप पंचदे० (ज-10) अननगदेव मक विषय में कुछ भी प्रात मही। तुमचा परिष-1३४ एफ) मुरारि ३० (८-१.७५) प्रति मिनार गोपिका दे० (-१४ी) जमदपाल-इनके विपप में कुछ भी बात कही। शांतसार तिरिका ० (-३५ ए4) मेमो(८-२८) बोरगप दीपिका दे० (अ-३४ माई) मन भाल--1मक विषय में कुछ मी काठमाही। उस पिल दे० (ज-१३४ ) भयाव-नीana (-१२) भारणीमामामाय रे० (-२४) मनम-पोष-वीरवास त विका। 20 रवीद(-१२५ पाल) Deir ठोठा ० (-१३४ यम) मनपाईद--अप० मुकाहाम्र, इसके विषय में एक परामस्थ दे० (-३४ एस) मीजासनही। (-११) वस्गौला रे (E-R३) (ग-१०५ दो) अमित गार दीपिस दे० (-१३५ भो) सौतापम र दीपि.(बी) जनमोनि-जाति के प्राण, सरपरका अनक-खामिली शरण-अयोध्या के माता मा तमाम, भोड्दा (बुदेशका) के राम मदिर के पुशारी ये। REVलगमा पर्तमान । समेलो ६०(१-५४) मेलमि० (-१३३) मनसम्पीर-नके विषय में कृष मी हात मही। मनग्जर-इनके विश्व मै कप मी हात नहीं। रामनार ०-२७१) उपासमी (1-230) जनार्दन महमके विषय में पूछ भी बात नहीं बनगोपाल-उपवच प्रतीत होता है,स१॥ बाज-शि-२६७१) केगमा वर्तमान समरे पिएप में और कुछ देवरवा दे. (-१७ बी) (ग-१०५) मीत्रात मही। सपी यात्रि० (-२६७ सी) सबर बार दे० (-1) जम्मखर वसिय (मशन) कता शिप अनगोपाश- १६५७ के लगमा वर्तमान, सं० १, वि० रामा जम्मोत्सव का वापूपाल के भनुपापी, गुरु दा की जीवनी लिखी है। उप० गोपाक्ष । जानादास-यह को मष साधु साम पड़ते पुत्रवरिषदे० (-) (-1) इस विषय में और भी बात माहीं । राश भाव परिव (क-२८) भामुगडी(२४) भागार परिषदेव (क-२३) जमुना पाप पेशि-पवाथमदासतामिका