पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/८४

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कपिपा दे० (क-1५६) जयमगनपसाद-हमके विपय मै धमी हार नहीं। संगार दे०(-१२८) प्रपा दे० (-४) भययात संग्रह-गमत्रावास कन, वि० मादि नारद ममतमा पाए० (-1४८) मैं भयोया का वर्णन और अंध में रामपद्र स्वापम्मुत्रमा मया दे० (क-१५६) बिहार । दे. (क-२४५) रचार या दे० (-५०) मपरामदास-पकाईमपारीपेइमषियप जामशेष की क्या दे० (क-1५1) में और ष भी मात नही। व्याप्त चरित (क-१५२) सर बिभाराच ९. (-120) मरेर व्या दे. (E-1५३) जयलाल काय कराम मौर राहारुण- भर भएपन या दे० (क-१५४) गड़बमान रबारी कवि जातिक परिसार कश दे० (क-२५५) सबक मई। 20 (ग-०) इसी सा दे० (-१५६) अपसिंह (महागम) उयपुर मरेश प्रभ्य का जयसिंह (हिवार-)जयपुररेश रुम्य महकमा स०१७५१-100 सकषि कृपाराम के भयहावा, पन्प कास ०१६ से १८०० भाभपाता-१५६) तक 120 (-३१) अपसिरजू देव--रोयाँ नरेश स० 11 के मग नर्सिा मिर्मा-जयपुरनरोग गावयाह मोरपड़ी भन पर्वमान, इनके घश की मामारली इस मे मिलाकी पाधि दी थी:०१७ प्रकार है:-मायसिंह पाप्रदेष के पग में लगमग घर्तमान प्रसिद्ध कवि गिधारीवाल माप्रयदाता । दे० (क-२१५) उत्पन्न हुए शिन्होंने पासवगह मिला जीता और परेल पश की मीय सामी, उनके मन भयसिंह रापरायान-जाति के प्रयास ११२ के सगमा वर्तमान किसी मुगल रुयसिंहए, उनके अवयसिंह उनके भ्रमीत सिंह और उनके पास सूत्रेय गुप, शिवनाय सम्राट् के मानिता मत में अयोध्या चले माप और सम्पासियों की मावि रहने लगे। और मजवेग कषि के भाभयदाता। सतसई ० (-२२६) २०१५-०६) (ब-१५) नपसिंह सनराई-महाराज सिंह मियां रण नरपिनी २० (क-२) पुष और महाराज प्रतापसिंह पितामह हरिचरितान.-1४०) इम समय में जयपुर मगर बसापागया। पनि रमा दे० (क-२४) (53) मापन समारे(-४) नल परनाप-महाराज मानसिंह गुरु ० परसराम यादे. (क-१४३) 20 लगमा पवमाम, ही भाशीर्वाद हरिरिलाइ पता (18) से राजा मानसिंह को यम्य मिला था। ३० परिवरित विग० (-४)