( ६३ ) अकाल शांत होने पर इन्होंने हबड़ा, मुर्शिदाबाद, रंगपुर आदि कई जिलों में बड़ा योग्यता से काम किया। इसी समय आप बंगाल एशियाटिक सोसायटी में सम्मिलित हुए मौर रंगपुर को विचित्र भाषा का व्याकरण बनाया। उसके नमूने भो प्रकाशित किए । सन् १८७७ में आप दर्भगा के मधुवनी सान में सबडिविजनल ग्राफ़ि- सर हो कर आए। यहां आप तीन वर्ष रहे और इसी अंतर में आपने कई एक देशी पंडितों की सहायता से मिथिला भापा का एक सांगोपांग व्याकरण बना डाला। यहां पर जो आस पास के पंडित या भजनी लोग आपसे मिलने आते उन्हें आप २) रु. और धोती जोड़ा विदाई में देते थे। शरीर को अस्वस्थता के कारण माप सन् १८८० में विलायत चले गए परंतु स्वास्थ्य ठीक हो जाने पर व्याह करके पत्नी सहित उसी साल फिर वापस चले आए । इस बार सरकार ने इन्हें कैथी भाषा के टाइप ढलवाने पर नियत किया। इस कार्य में आपने बड़ी योग्यता दिखलाई। कैथी भापा के अक्षर जो महाजनी की भांति थे उन्हें सर्व गुण आगरी नागरी को नाई सर्वांग सुंदर बना दिया। इसके बाद आप पटना के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट नियत हुए। यहां रह- कर आपने विहारी कृषिक जीवन नाम की एक पुस्तक रची। और विहारी की बोलियों का एक व्याकरण भी लिखा । यह सात भागों में है। इसे वंगाल गवर्नमेंट ने प्रकाशित कराया है। इस रचना से प्रापका बड़ा नाम हुआ। सन् १८८५ में पाप छुट्टी लेकर जर्मनी चले गए। यहां आप कई बड़ी बड़ी सभाओं में सम्मिलित हुए और अपने भारतवर्षाय साहित्य की अनोखी वातों पर एक निबंध पढ़ा। सन् १८८६ ई० में अष्ट्रिया में पूर्वी भाषाओं के संबंध में एक सभा होने वाली थी। अस्तु, आप भारत सरकार के प्रतिनिधि होकर उसमें भी सम्मिलित
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