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पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१२

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हिंदी-कोविद-रत्नमाला (१) राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद । सिद्ध रणथंभौरगढ़ में धंधाल नाम का एक प्रमार राजा राज्य करता था। घह जैन-धर्मावलंबी था। उसके पुत्र का नाम गोखरू हुआ। हमारे राजा साहिब इसी गोखरू वंश से उत्पन्न थे। बादशाही समय में इनके पूर्वज दिल्ली में जौहरी का व्यवसाय करते थे। ये नादिरशाही में दिल्ली से भाग कर मुरशिदाबाद चले गए । नवाब कासिमपलीखों के प्रत्याचार से राजा शिवप्रसाद के पितामह राय दालचंद काशी में आ यसे । जन्म पापका मिती माघ शुदि २ संवत् १८८० में हुआ था। पिता का नाम धावू गोपीचंद था। इनके घर की सब स्त्रिया पढ़ी लिखी थी इसलिये पांच हो पर्प के शैशव से राजा शिवप्रसाद की शिक्षा का प्रबंध हो गया। पहिले तो इन्होंने घर पर कुछ हिंदी और उई पढ़ी। फिर पीपीहटिया के स्कूल में फ़ारसी का अध्ययन करने लगे। इसके पीछे संस्कृत का भी अभ्यास किया। जब कि राजा साहिब की कोई १३ या १४ पर्प को पयस्था थी फलकाचे के फोर्टविलियम कालेज के प्रोफेसर बाबू तारखीचरण मित्र पैसनर का काशीयास के अर्थ बनारस में आना हुमा। उनके पुत्रों से पार किशोर राजा शिवप्रसाद से घनिष्ट मित्रता हो गई । पार उन्होंसे इन्होंने अंगरेजी पार बंगला भाषाएँ मोखी पौर १९ वर्षको 2 1