(२) प्रयम्या में मंस्टरा, हिंदी, परथी, फारसी, अंगरजी पार वंगला में प्रच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। इस प्रकार अपनी शिक्षा समाप्त कर मुकने पर अपने मामा की सहायता से घायू शियप्रसाद भरतपुर दरबार में नौकर हुए। पहां जाते ही मापने पहिला कार्य यदाकया कि राज्य के दीवान की, जो कि राजा को दयाए पार रियासत पर अपना प्रभुत्व जमाए हुए था, अँगरेज़ सरकार की अनुमति मे ८० काययों सहित जेल भिजवाया मार महाराज को स्वतंत्र कर दिया। इस कार्य से प्रसन्न होकर महाराज ने इन्हें अपना यकील नियुक्त किया। इस अयस्या में इन्होंने गवर्नमेंट से लड़ाई के तकाजे के १८ लाख रुपए भरतपुर को माफ़ करवाए। कुछ काल के पोछे ये भरतपूर की नौकरी छोड़ कर घर चले आए और फिर भरतपुर न गए । सन् १८४५ ई० में राजा साहिब ने अँगरेज सरकार की सेवा स्वीकार की। उस समय सिक्स युद्ध का प्रारंभ था। ये अँगरेज़ी लइकर के साथ सरहद्द पर गप और गवर्नर जनरल की आज्ञानुसार यहाँ इन्होंने एक अत्यंत साहस, वीरता और स्वामिभक्ति का यह काम किया कि अकेले शत्रुसेना में जाकर वहां की तो गिन आप तथा पौर भी भेद ले आए । अथ च, आप ही अकेले महाराजा दिलीपसिंह को बंबई तक पहुँचा कर जहाज़ पर सवार करा आए। सिक्खों से संधि हो चुकने पर जब गवर्नर जनरल शिमले को गए तो इन्हें भी साथ लेते गए और एक पद विशेष पर नियुक्त किया। वहाँ इन्होंने बड़े परिश्रम से अपना काम किया जिससे ये दिन दिन अँगरेज़-कर्मचारियों के कृपापात्र होते गए। उसी कृपा के कारण राजा शिवप्रसाद ने यह सेवा और भक्ति की कि जो उनके जाननेपाले सम पुरुषों पर विदित है। हजरत सब के युरे बने पर
पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१३
दिखावट