( ७३ ) संवत् १९३४ से इन्होंने अपनी जोषिका भी संभाली और टम भी संभाली। संवत् १९४० तक के प्रायः सब हिंदी के पत्रों पापके लेख पाए जाते हैं। सघ लेप गूढ़ और प्रभायजनक । सब लेखों को संख्या कोई दो सौ होगी पर कोई कोई लेख तो तने बड़े हैं कि जिनको एक अलग पुस्तक वन सकती है। सन् ८८३ में इन्होंने "भारतेंदु" मासिक पत्र निकाला पर सहायता के भाव से इसे बंद कर देना पड़ा। सन् १८८४ ई० में प्रयाग में हेदी-पत्र-समादकों की एक सभा हुई थी, उसके आप मंत्री थे। सन् १८८६ में इन्हें कांग्रेस का प्रतिनिधि होकर कलकत्त जाना ड़िा। वहां से आकर इन्होंने "विदेश-यात्रा-विचार' ओर "विधवा- वेयाह-विवरण" दो ग्रंथ समाजसंशोधन पर लिखे । सन् १८८५ ये वृंदावन के म्युनिसिपल कमिश्नर चुने गए । इस पद पर इन्हों । वड़ो स्वतंत्रता, योग्यता और सावधानी से कार्य किया । सन् १८९३ में इन्होंने मथुरा को डिविजनल काँग्रेस कमेटी के मंत्री का कार्य किया। 1 इस समय भी पाप वृंदावन के प्रानरेरी मजिस्ट्रेट पोर म्युनि- सिपल कमिश्नर हैं। यद्यपि आप पके सनातन-धर्मावलंबी हैं परंतु किसी मत से द्वेष नहीं रखते वरन् वर्तमान समाज-संशोधन के माप पक्षपाती हैं सन् १८८३ में जब कि शिक्षा-कमिशन बैठी थी तो इन्होंने २१००० मनुष्यों के हस्ताक्षर हिंदी के पक्ष में करवाए थे । समाचार पत्रों के तो आप इतने प्रेमी हैं कि छोटे से लगा कर बड़े तक जितने हिंदी के समाचारपत्र आजलों निकले या निकल रहे हैं सब की पूरी फ़ाइलें आपके यहाँ पाई जा सकती हैं।
पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१३५
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