पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१४५

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दि पर नियत किया परंतु थोड़े हो दिनों के बाद राज्यप्रबंध में कुछ गड़बड़ देख कर इन्होंने वहां रहना उचित न समझा पार इस्तीफ़ा देकर वे वहां से चले आए। इन्होंने स्वर्गीय वावू भूदेव मुखापाध्याय के अनुरोध से विहार प्रांत के लिये हिंदी में कुछ पाख्य पुस्तके भो लिखी था जो कि अब तक बिहार के स्कूलों में प्रचलित हैं। जंबू राज्य से पीड़ित एक स्वदेशी पुरुप के कहने से इन्होंने उचितवका में जंबू राज्य के रहस्यों को प्रकाशित करना प्रारंभ किया परंतु इससे जव जंबू को शासन प्रणाली पर कुछ भी प्रभाव न पड़ा तो इन्होंने देशवासियों के एक दल के सहित उस समय हिंदुस्तान में आए हुए पाामेंट के मेंबर मिस्टर पैडला से मुला- कात को और अपने देशवासियों का दुःख सुनाया। उन्होंने विलायत जाकर इनकी बड़ी तारीफ की और पाामेंट में बंदूराज्य की बातें पेश करके उनका सुधार करवाया। थोड़े हो दिन हुए इन्होंने "मार- चाड़ो बन्धु" नाम का साप्ताहिक पत्र निकाला था पर वह भी आज अमृत बाजारपत्रिका के प्रवर्तक समादक राजनीति-कुशल व शिशिर-कुमार घोष को पंडित दुर्गाप्रसाद अपना राजनै- कि गुरु मानते हैं। पंडित जी ने हिंदी में छोटी बड़ा कुल २०, २२ रतकें लित हैं। माज कल आप महाराज रणवीर सिंह का जीवन- परित्र लिन रहे हैं । आप बड़े साधारण स्वभाव के मिलनसार और समुख मनुष्य हैं और वंगाल में हिंदा-पत्रों के जन्मदाता पौर