पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१४६

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तीन पुत्र हुए। वहां से इन्होंने वी० ए० की परीक्षा तक पढ़ा पर उसमें मह मानेकर जो से संस्कृत भी पढ़ते थे। इनकी वाइबिल पर (२७) यात्रु रामकृष्ण वर्मा। सन् १८४० के लगभग हीरालाल यया पंजाब से 4 स चल कर काशी को प्राए । यहाँ वरिया गली टहर कर इन्होंने परतूनी की दुकान खोटी - फरीय पचास वर्ष की अवस्था में आजमगढ़ अपना बियाह किया, इनके राधारप, जयण पार रामक वाव राममय यमा का जन्म सन् १८५९ संवत् १९१६ आदि कृष्ण ७ को मुमा था । जिस समय इनके पिता का ७० वर्ष अयस्या में देहांत हुआ उस समय इनके बड़े भाई राधाकृष्य १६ वर्ष की अवस्था थी मार रामकृप्य केवल एक वर्ष एक महीने थे। इनकी माता ने अपने तीनों पुत्रों का बड़े कष्ट से पालन पोष- किया क्योंकि उस समय इनको आर्थिक अवस्था बहुत ही हीन यो कुछ चयः प्राप्त होने पर इनको माता ने इन्हें पढ़ने को बैठाया जब इन्होंने गुरु के यहां हिंदी पढ़ना लिखना सीख लिया तब जयनारायण कालेज में अंगरेजी पढ़ने के लिये बैठाए गए। यहां इन्होंने खूब मन लगा कर पढ़ा । वाइविल की परीक्षा में तो हमेश श्रीवल रहते थे। दूसरी भाषा इनकी संस्कृत थी, इन्हों। संस्कृत में भी अच्छी योग्यता प्राप्त की । उक्त स्कूल से पटे पास कर लेने पर इन्होंने क्वींस कालेज में नाम लिखाया और उत्तीर्ण न हो सके। कालेज में पढ़ते समय ये घर पर पंडित हरि-