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व देय कर उन्होंने न को साई धर्म में हरा कर मना-
अपामार्ग घतलाया । ये अकसर कहा करते थे किनमें
मांगने में बचाने में पंडित जी ने मेरे ऊपर यही सग की दी।
प्रायस्था में वायू रामहप्प ट्यसनों में अपनी जोया
चा पदना जोड़ने के बाद उन्होंने हरियंट फल में
धर्ग कालो पर कुछ दिन पो पह भी कह दो पार किताबों
inोरी मी दूकान कर ली। पाच हरिदजी की नग
अंजाम दिर के प्रमश लाल जी महागन कोन पर
सिंग
पिशाप्र-दि पर हिंदी भाषा मात्र में ही
Mah। इनकी किसानों की मान पच्ची मारी। गन्
५४ में फस जाकर उन्होंने एक अंग परीक्षा । म प्रेम में
रमाई मनपंडन नाम की एक पुस्तक मी
माको घर जल्दी ही नका माना निकला
२ मामं माप में होने "भालजीपन" नामघar
सामरितोरि जारी है। मगर
भरा नाम था दरिद्र मानेपर्य माग ग
दोपदी पप्पुलर प्रकाशित ।
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पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१४९
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