पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१५०

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(८२) पंतिम परिश्रम कथासरित्सागर का भाषानुवाद है। इसे इन्हों केवल दश भागों तक अनुवाद किया था। फिर अधिक अस्वस्थत के कारण प्रागे से इस काम को उत्साहपूर्वक न कर सके। दो तीन साल से इनकी तबीयत बहुत सराब रहती थी। १९०५ में ये बहुत बीमार हो गए थे पर अच्छे हो गए । फिर १९०६ में इन्हें जलोदर रोग हुआ पार उसीसे ता. २५ दिसंब सन् १९०६ के संध्या को इनका स्वर्गवास हो गया। इनकी संता एक फन्या है। या रामकृष्ण ने अपने परिश्रम और अध्यवसाय से अर्च उन्नति की पौर नाम पैदा किया। अपने बाहुबल से मनुष्य क- कर सकता है इसके ये आदर्श धे।