(२) महर्षि दयानंद सरस्वती । मी दयानंद सरस्वती का जन्म सन् १८२४ ई० में गुज- रात देश के मोरवी नगर में हुआ था। ये औदीच ब्राह्मण थे और इनका असली नाम मूलशंकर था इनके पिता अंबाशंकर एक प्रतिष्ठित जमादार थे । स्वामी जी को सामयिक प्रथा के अनुसार बाल्यावस्था में पर और शुक्ल यजुर्वेद का अध्ययन आरंभ कराया गया । एक समय जब इनकी अवस्था केवल १४ वर्ष की थी इनके पिता ने इन्हें शिव रात्रि का प्रत रखने की माशा दी। रात्रि में सब लोग शिवालय जागरण करने गए। और सब तो सो गए परन्तु स्वामी जी के मोंद न पाई । देवयोग से उसी समय एक चूहा शिव जी की पिंडी पर चढ़ गया और चढ़े हुए अक्षत को खाने लगा । यह देख कर स्वामी जो के मन से मूर्तिपूजा से श्रद्धा उठ गई पार ये यह कह कर घर को चले पाए कि जब तक शिव जी के प्रत्यक्ष दर्शन फरलूंगा तब तक कोई प्रत या नियम न करूंगा। जिस समय स्वामी जी की अवस्था २० वर्ष की हुई इनके चाचा का देहांत हो गया। इन्हें बहुत चाहते थे इसलिये उनकी मृत्य से इनके चित्त पर कड़ी चोट लगी और पैराग्य उत्पन्न हो पाया। इस समय इनको जो पच्चा पंडित या जानकार पुरुष मिलता उसीसे ये यह प्रश्न करते कि मनुष्य अमर किस प्रकार से हो सकता पार उतर मिलता कि योगाभ्यास मे। यह सुन कर स्यामी जी योगाभ्यास की शिक्षा प्रान करने को उत्कट पाई। न
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